Monday, October 19, 2020

power of om chanting

*POWER  of  OM*   
                                            
*एक घडी, आधी घडी,*
*आधी  में  पुनि  आध।*
*तुलसी चरचा राम की,*
*हरै   कोटि   अपराध।।*

 1     घड़ी  =   24 मिनट
 1/2 घडी़  =   12 मिनट
 1/4 घडी़  =   06 मिनट

*क्या ऐसा हो सकता है कि 6 मिनट में किसी साधन से करोडों विकार दूर हो सकते हैं।*

उत्तर है *हाँ   हो   सकते   हैं*
वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि......

सिर्फ   6   मिनट   *ऊँ*   का उच्चारण करने से सैकडौं रोग ठीक हो जाते हैं जो दवा से भी इतनी जल्दी ठीक नहीं होते.........

👉 छः मिनट ऊँ का उच्चारण करने से मस्तिष्क में विषेश वाइब्रेशन (कम्पन) होता है.... और ऑक्सीजन का प्रवाह पर्याप्त होने लगता है।

👉कई मस्तिष्क रोग दूर होते हैं.. स्ट्रेस और टेन्शन दूर होती है, स्मरण शक्ति बढती है..।

👉लगातार  सुबह  शाम  6 मिनट *ॐ* के तीन माह तक उच्चारण से रक्त संचार संतुलित होता है और रक्त में *ऑक्सीजन लेबल* बढता है।
*रक्त चाप, हृदय रोग, कोलस्ट्रोल* जैसे रोग ठीक हो जाते हैं....।

👉मात्र 2 सप्ताह दोनों समय *ॐ* के उच्चारण से *घबराहट, बेचैनी, भय, एंग्जाइटी* जैसे रोग दूर होते हैं।

👉कंठ में विशेष कंपन होता है *मांसपेशियों को शक्ति* मिलती है..।

*👉थाइराइड, गले की सूजन दूर होती है और स्वर दोष दूर होने लगते हैं..।*

👉एक माह तक दिन में तीन बार 6 मिनट तक *ॐ* के उच्चारण से *पाचन तन्त्र, लीवर, आँतों को शक्ति प्राप्त होती है,* और डाइजेशन सही होता है, सैकडौं *उदर रोग* दूर होते हैं..।

👉उच्च स्तर का प्राणायाम होता है, और फेफड़ों में विशेष कंपन होता है..।
*फेफड़े मजबूत* होते हैं, *स्वसनतंत्र की शक्ति* बढती है, *6 माह में  अस्थमा, राजयक्ष्मा (T.B.)* जैसे रोगों में लाभ होता है।

👉आयु बढती है।

ये सारे रिसर्च (शोध) विश्व स्तर के वैज्ञानिक स्वीकार कर चुके हैं।
*जरूरत है छः मिनट रोज करने की....।*
    
*नोट:- ॐ का उच्चारण लम्बे स्वर में करें।।*
🙏🏻🌹

Saturday, October 10, 2020

empty yourself

*एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये | दुकान में अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे*

*सन्यासी ने  एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए* *दुकानदार" से पूछा, "इसमें क्या है?"*

*दुकानदार ने कहा, "इसमें नमक है।"*

*सन्यासी ने फिर पूछा, "इसके* *पास वाले में क्या है ?"*

*दुकानदार ने कहा, "इसमें हल्दी है।"*

*इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा।*

*अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया, सन्यासी ने पूछा,* *"उस अंतिम डिब्बे में क्या है?"*

*दुकानदार बोला, "उसमें श्रीकृष्ण हैं।"*

*सन्यासी ने हैरान होते हुये पूछा, "श्रीकृष्ण !! भला यह* *"श्रीकृष्ण" किस वस्तु का नाम है भाई? मैंने तो इस नाम के* *किसी सामान के बारे में कभी नहीं सुना !"*

*दुकानदार सन्यासी के भोलेपन पर हंस कर बोला,* *"महात्मन ! और डिब्बों मे तो* *भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं | पर यह* *डिब्बा खाली है| हम खाली को खाली नहीं कहकर* *श्रीकृष्ण कहते हैं !"*
 
*संन्यासी की आंखें खुली की* *खुली रह गई ! जिस बात के* *लिये मैं दर-दर भटक रहा था, वो बात मुझे आज एक व्यापारी से समझ आ रही है।* *वो सन्यासी उस छोटे से किराने के दुकानदार के चरणों* *में गिर पड़ा, ओह, तो खाली में श्रीकृष्ण रहता है !*

 *सत्य ही तो है...!*

*भरे हुए में श्रीकृष्ण को स्थान कहाँ...?*

*काम, क्रोध, लोभ, मोह, लालच, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी, सुख-दुख की बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा ?*

Saturday, October 3, 2020

निरोगी कैसे रहे

कल एक रोगी आए थे, जिन्हें गैस और इनडाइजेशन की भयंकर तकलीफ थी यह आर्टिकल विशेष रूप से उन्हीं के लिए
**************
खाना खाने के बाद पेट में खाना पचेगा या खाना सड़ेगा
ये जानना बहुत जरुरी है ...

हमने रोटी खाई, हमने दाल खाई,हमने सब्जी खाई, हमने दही खाया
लस्सी पी ,
दूध,दही छाछ लस्सी फल आदि|,
ये सब कुछ भोजन के रूप में हमने ग्रहण किया
ये सब कुछ हमको ऊर्जा देता है
और पेट उस ऊर्जा को आगे ट्रांसफर करता है |
पेट में एक छोटा सा स्थान होता है जिसको हम हिंदी मे कहते हैं "आमाशय"
उसी स्थान का संस्कृत नाम है "जठर"|
उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते हैं
" epigastrium "|

यह एक थैली की तरह होता है
और यह जठर हमारे शरीर मे सबसे
महत्वपूर्ण है
क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी में आता है।

ये बहुत छोटा सा स्थान है
इसमें अधिक से अधिक 350GMS खाना आ सकता है |
हम कुछ भी खाते सब ये अमाशय में आ जाता है|

आमाशय में अग्नि प्रदीप्त होती है उसी को कहते हे"जठराग्नि"।
ये जठराग्नि है वो अमाशय में प्रदीप्त होने वाली आग है । ऐसे ही पेट मे होता है जैसे ही आपने खाना खाया की जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी |
यह ऑटोमेटिक है,जैसे ही आपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह में डाला की इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई|
ये अग्नि तब तक जलती है जब तक खाना पचता है |

अब अपने खाते ही गटागट पानी पी लिया और खूब ठंडा पानी पी लिया|

और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते हैं |

अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वो बुझ गयी|

आग अगर बुझ गयी तो खाने की पचने की जो क्रिया है वो रुक गयी|

अब हमेशा याद रखें खाना जाने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है,

एक क्रिया है जिसको हम कहते हैं "Digestion" और दूसरी है "fermentation"
फर्मेंटेशन का मतलब है सडना
और डायजेशन का मतलब हे पचना|

आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा,खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा|

जो रस बनेगा तो उसी रस से रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा और सबसे अन्त में बनता है शुक्र (वीर्य) बनता है।
ये तभी होगा जब खाना पचेगा|

यह सब हमें चाहिए|

ये तो हुई खाना पचने की बात

अब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा..? खाने के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है वो हे यूरिक एसिड (uric acid )

|कई बार आप डॉक्टर के पास जाकर कहते है की मुझे घुटने मे दर्द हो रहा है,
मुझे कंधे-कमर मे दर्द हो रहा है

तो डॉक्टर कहेगा आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है आप ये दवा खाओ, वो दवा खाओ
यूरिक एसिड कम करो|

और एक दूसरा उदाहरण खाना

जब खाना सड़ता है, तो यूरिक एसिड जेसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते हे
LDL (Low Density lipoprotive)
माने खराब कोलेस्ट्रोल (cholesterol )|

जब आप ब्लड प्रेशर(BP) चेक कराने डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो आपको कहता है (HIGH BP )

हाई-बीपी है आप पूछोगे कारण बताओ?

तो वो कहेगा कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है |

आप ज्यादा पूछोगे की कोलेस्ट्रोल कौनसा बहुत है ?

तो वो आपको कहेगा LDL बहुत है |

इससे भी ज्यादा खतरनाक एक विष हे
वो है VLDL
(Very Low Density lipoprotive)|

ये भी कोलेस्ट्रॉल जेसा ही विष है।
अगर VLDL बहुत बढ़ गया तो आपको भगवान भी नहीं बचा सकता| खाना सड़ने पर और जो जहर बनते है उसमे एक ओर विष है जिसको अंग्रेजी मे हम कहते है triglycerides|

जब भी डॉक्टर आपको कहे की आपका "triglycerides" बढ़ा हुआ हे तो समज लीजिए की आपके शरीर मे विष निर्माण हो रहा है |

तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे,कोई कोलेस्ट्रोल के नाम से कहे, कोई LDL -VLDL के नाम से कहे समझ लीजिए की ये
विष हे और ऐसे विष 103 है |

ये सभी विष तब बनते है जब खाना सड़ता है |

मतलब समझ लीजिए किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे ध्यान आना चाहिए की खाना पच नहीं रहा है ,

कोई कहता हे मेरा triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे डायग्नोसिस कर लीजिए आप ! की आपका खाना पच नहीं रहा है |

कोई कहता है मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने मे की खाना पच नहीं रहा है |

क्योंकि खाना पचने पर इनमे से कोई भी जहर नहीं बनता|

खाना पचने के बाद रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा और सबसे अन्त में बनता है शुक्र (वीर्य) बनता हैं जिसका प्रक्रिया ३५ से ४२ दिन है।

और

खाना नहीं पचने पर बनता है यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल
,LDL-VLDL|

और यही आपके शरीर को रोगों का घर बनाते है !

पेट मे बनने वाला यही जहर जब
ज्यादा बढ़कर खून मे आते है ! तो खून दिल की नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा जो खून मे आया है इकट्ठा होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है
*जिसे आप heart attack कहते हैं !

तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बात पर देना है
की जो हम खा रहे हे वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिए
और खाना ठीक से पचना चाहिए इसके लिए पेट मे ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए| क्योंकि बिना आग के खाना पचता नहीं हे और खाना पकता भी नहीं है

* महत्व की बात खाने को खाना नहीं खाने को पचाना है |

आपने क्या खाया कितना खाया वो महत्व नहीं है।

खाना अच्छे से पचे इसके लिए वाग्भट्ट जी ने सूत्र दिया !!

"भोजनान्ते विषं वारि"
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(मतलब खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर
है )

* इसलिए खाने के तुरंत बाद पानी कभी मत पियें!*

अब आपके मन मे सवाल आएगा कितनी देर तक नहीं पीना ???

तो 1 घंटे 48 मिनट तक नहीं पीना !

अब आप कहेंगे इसका क्या calculation हैं ??

बात ऐसी है !

जब हम खाना खाते हैं तो जठराग्नि द्वारा सब एक दूसरे में मिक्स होता है और फिर खाना पेस्ट में बदलता  है !

पेस्ट में बदलने की क्रिया होने तक 1 घंटा 48 मिनट
का समय लगता है !

उसके बाद जठराग्नि कम हो जाती है !

(बुझती तो नहीं लेकिन बहुत
धीमी हो जाती है )

पेस्ट बनने के बाद शरीर में रस बनने की प्रक्रिया शुरू होती है !

तब हमारे शरीर को पानी की जरूरत होती हैं ।

तब आप जितना इच्छा हो उतना पानी पियें !!

जो बहुत मेहनती लोग हैं (खेत मे हल चलाने वाले ,रिक्शा खींचने वाले, पत्थर तोड़ने वाले)

उनको 1 घंटे के बाद ही रस बनने
लगता है उनको घंटे बाद
पानी पीना चाहिए !

अब आप कहेंगे खाना खाने के पहले कितने मिनट तक पानी पी सकते हैं ???

तो खाना खाने के 45 मिनट पहले तक आप पानी पी सकते हैं !

अब आप पूछेंगे ये मिनट का calculation ????

बात ऐसी ही जब हम पानी पीते हैं
तो वो शरीर के प्रत्येक अंग तक जाता है !

और अगर बच जाये तो 45 मिनट बाद मूत्र पिंड तक पहुंचता है !

तो पानी - पीने से मूत्र पिंड तक आने का समय 45 मिनट का है !

तो आप खाना खाने से 45 मिनट पहले ही पानी पियें !
पानी न पीयें खाना खाने के बाद।
इसका जरूर पालन करें ।

wheat flour(slow poison)

Millets: रागी, ज्वार, झंगोरा, कोदो, कुटकी, साँवाँ, बाजरा, काँगणी, कुरी, बटी, राजगिरा, हमलाई, चीना ये सब विभिन्न प्रकार के अन्न (millets) हैं, जो गेहूँ और चावल की साज़िश के शिकार हुए हैं।
…………………………………………………………………….
(एक बहुत ही प्रसिद्ध हृदय-चिकित्सक समझाते है के, 
*गेहूं खाना बंद करने से आपकी सेहत को कितना अधिक लाभ हो सकता है।*

हृदय-चिकित्सक Dr. विलियम डेविस, MD ने अपने पेशे की शुरुवात, हृदय रोग के उपचार के लिए 'अंजीओ प्लास्टी' और 'बाईपास सर्जरी' से किया था।

वे बताते है के, "मुझे वो ही सब सिखाया गया था, और शुरू शुरू में तो, मैं भी वोही सब करना चाहता था।"

लेकिन, जब उनकी अपनी माताजी का निदन साल 1995 में दिल का दौरा पड़ने से हुआ , जो उन्हें बहतरीन इलाज उपलब्ध कराने के बावाजूद हुआ, 
तब उनके मन में अपने ही पेशे को लेकर चिंता और परेशान कर देने वाले प्रश्न उठने लगे।

वे कहते है के,

"मैं रोगीयों के हृदय का इलाज कर तो देता था, लेकिन वे कुछ ही दिनों में उसी समस्या को लेकर मेरे पास फिर लौट आते थे। 

वो इलाज तो मात्र 'बैंड-ऐड' लगाकर छोड़ देने के समान था, जिसमें बीमारी का मूल कारण पकड़ने का तो प्रयास भी नहीं किया जाता था।"

इसलिए उन्होंने अपने अभ्यास को एक उच्च स्तर और क्वचित ही उपयोग में लाये हुए दिशा की ओर मोड़ा- जो था 

'बीमारी को होने ही नही देना'।

फिर उन्होंने अपने जीवन के अगले 15 सालों को इस हृदय रोग के मूल कारणों को जानने, समझने में व्यतीत किया।

जिसके परिणाम स्वरूप जो आविष्कार हुए, वो उन्होंने 'न्यू यॉर्क टाइम्स' के सबसे अधिक बिकने वाली किताब "Wheat Belly"(गेहूं की तोंद) में प्रकाशित किया है। 

जिसमें हमारे बहुत से रोग, 
जैसे के हृदय रोग, 
डायबिटीज और मोटापे का संबंध गेहूं के सेवन करने के कारण बताया गया है।

गेहूं का सेवन बंद कर देना हमारे सम्पूर्ण जीवन को ही बदल सकता है।

*“Wheat Belly”(गेहूं की तोंद) क्या है?*

गेहूं के सेवन करने से, शरीर में चीनी की मात्रा आश्चर्यजनक पूर्वक बढ़ जाती है।

सिर्फ दो गेहूं की बनी ब्रेड स्लाइस खाने मात्र से ही हमारे शरीर में चीनी की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जाती है जितना तो एक स्नीकर्स बार(चॉकलेट, चीनी और मूंगफली से बनी) खाने से भी नहीं होता।

उन्होंने आगे बताया के, 

"जब मेरे पास आने वाले रोगियों ने गेहूं का सेवन रोक दिया था, तो उनका वजन भी काफी घटने लगा था, खास तौर पर उनकी कमर की चरबी घटने लगी थी।
एक ही महीने के अंदर अंदर उनके कमर के कई इंच कम हो गए थे।"

"गेहूं का हमारे कई सारे रोगों से संबंध है ऐसा जानने में आया है। मेरे पास आने वाले कई रोगियों को डायबिटीज की समस्या थी या वे डायबिटीज के करीब थे।

मैं जान गया था के गेहूं शरीर में चीनी की मात्रा को बढ़ा देता है, जो किसी भी अन्य पदार्थ के मुकाबले अधिक था, इसलिए, मैंने कहा के, 
"गेहूँ का सेवन बंद करके देखते है, के इसका असर शरीर में चीनी की मात्रा पे किस तरह होता है"

3 से 6 महीनों से अंदर अंदर ही उन सब के शरीर में से चीनी की मात्रा बहुत कम हो गई थी।

इसके साथ साथ वे मुझसे आकर यह भी कहते थे, के मेरा वजन 19 किलो घट गया है, 
या
मेरी अस्थमा की समस्या से मुझे निवारण मिल गया, या
मैंने अपने दो इन्हेलर्स फेंक दिए है, 
या 20 सालों से जो मुझे माइग्रेन का सिरदर्द होता रहा है, वो मात्र 3 दिनों के अंदर ही बिल्कुल बंद हो गया है, 
या मेरे पेट में जो एसिड रिफ्लक्स की समस्या थी वो बंद हो गई है, 
या मेरा IBS अब पहले से बेहतर हो गया है, या
मेरा उलसरेटिव कोलाइटिस, 
मेरा रहेउमाटोइड आर्थराइटिस, 
मेरा मूड, मेरी नींद... इत्यादि इत्यादि। 

*गेहूं की बनावट को देखा जाए तो इसमें,*

1)अमलोपेक्टिन A, एक रसायन जो सिर्फ गेहूं में ही पाया जाता है, जो खून में LDL के कणों को काफी मात्रा में जगा देता है, जो ह्रदय रोग का सबसे मुख्य कारण पाया गया है।
 
गेहूं का सेवन बन्द कर देने से LDL कणों की मात्रा 80 से 90 % तक घट जाती है।

2) गेहूं में बहुत अधिक मात्रा में ग्लैडिन भी पाया जाता है, यह एक प्रोटीन है जो भूक बढ़ाने का काम करती है, इस कारण से गेहूं का सेवन करने वाला व्यक्ति एक दिन में अपनी ज़रूरत से ज़्यादा, कम से कम 400 कैलोरी अधिक सेवन कर जाता है।  

ग्लैडिन में ओपीएट के जैसे गुण भी पाए गए है जिसके कारण इसका सेवन करने वाले को इसकी लत लग जाती है, नशे की तरह।

खाद्य वैज्ञानिक इस बात को 20 सालों से जानते थे।

3) क्या गेंहू का सेवन बंद कर देने से हम ग्लूटेन मुक्त हो जाते है?

ग्लूटेन तो गेहूं का सिर्फ एक भाग है। ग्लूटेन को निकाल कर भी गेंहू को देखे, तो वो फिर भी घातक ही कहलायेगा क्योंकि इसमें ग्लैडिन,  अमलोपेक्टिन A के साथ साथ और भी अनेक घातक पदार्थ पाए गए है।

ग्लूटेन मुक्त पदार्थ बनाने के लिए, 
मकई की मांडी, 
चावल की मांडी, 
टैपिओका की मांडी ओर 
आलू की मांडी का उपयोग किया जाता है।

और इन चारों का जो पाउडर है, वो तो शरीर में चीनी की मात्रा को और भी अधिक बढ़ा जाते है।

मैं आप लोगों से आग्रह करता हुँ के 
सच्चा आहार लेना आरंभ करें:
कच्चा आहार लेना आरम्भ करे ।

जैसे के फल, 
सब्जियां, 
दाने, बीज, 
घर का बना पनीर, इत्यादि।

साल 1970 और 1980 के अंतर्गत, गेहूं के उपज जो बढ़ाने के लिए जिन आधुनिक विधियों को और यंत्रों को उपयोग में लाया गया था, उनसे गेंहू अंदर से बिल्कुल बदल गया है।

गेहूं की उपज छोटी और मोटी होने लगी, जिसमें ग्लैडिन(भूक बढ़ाने वाली पदार्थ) की मात्रा भी बहुत अधिक हो गई है। 

50 वर्ष पूर्व जो गेहूं सेवन में लिया जाता था वो अब वैसा नही रहा।

ब्रेड, पास्ता, चपाती इत्यादि का सेवन बंद करके यदि सच्चे आहार का सेवन करना शुरू कर दिया जाए, 
जैसे के चावल, फल और सब्जियां है तो भी वजन घटाने में मदद ही होगी क्योंकि चावल चीनी की मात्रा को इतना नही बढ़ता है जितना गेहूं बढ़ाता है 

और चावल में  अमलोपेक्टिन A और ग्लैडिन (जो भूक बढ़ता है )भी नही पाया जाता है।

चावल खाने से आप ज़रूरत से अधिक कैलोरीस का सेवन भी नहीं करेंगे, जैसे गेंहू में होता है।

इसीलिए तो वो सारे पश्चिमी देश जहाँ गेहूं का सेवन नहीं किया जाता वे ज़्यादा पतले और तंदुस्र्स्त होते है। 

'न्यू यॉर्क टाइम्स' के सबसे अधिक बिकने वाली किताब "Wheat Belly"(गेहूं की तोंद) में से लिया गया अंश
लेखक: प्रसिद्ध हृदय-चिकित्सक Dr. विलियम डेविस, MD

Sunday, June 7, 2020

स्वयं को संगठन से जोड़िये

स्वयं को संगठन से जोड़िये ********************************* एक वन में बहुत बडा अजगर रहता था। वह बहुत अभिमानी और अत्यंत क्रूर था। जब वह अपने बिल से निकलता तो सब जीव उससे डरकर भाग खड़े होते। उसका मुंह इतना विकराल था कि खरगोश तक को निगल जाता था। एक बार अजगर शिकार की तलाश में घूम रहा था। सारे जीव अजगर को बिल से निकलते देखकर भाग चुके थे । जब अजगर को कुछ न मिला तो वह क्रोधित होकर फुफकारने लगा और इधर-उधर खाक छानने लगा। वहीं निकट में एक हिरणी अपने नवजात शिशु को पत्तियों के ढेर के नीचे छिपाकर स्वयं भोजन की तलाश में दूर निकल गई थी। अजगर की फुफकार से सूखी पत्तियां उडने लगी और हिरणी का बच्चा नजर आने लगा। अजगर की नजर उस पर पड़ी हिरणी का बच्चा उस भयानक जीव को देखकर इतना डर गया कि उसके मुंह से चीख तक ना निकल पाई। अजगर ने देखते-ही-देखते नवजात हिरण के बच्चे को निगल लिया। तब तक हिरणी भी लौट आई थी, पर वह क्या करती ? आंखों में आंसू भरके दूर से अपने बच्चे को काल का ग्रास बनते देखती रही। हिरणी के शोक का ठिकाना न रहा। उसने किसी-न किसी तरह अजगर से बदला लेने की ठान ली। हिरणी की एक नेवले से दोस्ती थी। शोक में डूबी हिरणी अपने मित्र नेवले के पास गई और रो-रोकर उसे अपनी दुखभरी कथा सुनाई। नेवले को भी बहुत दु:ख हुआ। वह दुख-भरे स्वर में बोला मित्र, मेरे बस में होता तो मैं उस नीच अजगर के सौ टुकडे कर डालता। पर क्या करें, वह छोटा-मोटा सांप नहीं है, जिसे मैं मार सकूं वह तो एक अजगर है। अपनी पूंछ की फटकार से ही मुझे अधमरा कर देगा। लेकिन यहां पास में ही चीटिंयों की एक बांबी हैं। वहां की रानी मेरी मित्र हैं। उससे सहायता मांगनी चाहिए। हिरणी निराश स्वर में विलाप किया “पर जब तुम्हारे जितना बडा जीव उस अजगर का कुछ बिगाडने में समर्थ नहीं हैं तो वह छोटी-सी चींटी क्या कर लेगी?” नेवले ने कहा 'ऐसा मत सोचो। उसके पास चींटियों की बहुत बडी सेना हैं। संगठन में बडी शक्ति होती हैं।' हिरणी को कुछ आशा की किरण नजर आई। नेवला हिरणी को लेकर चींटी रानी के पास गया और उसे सारी कहानी सुनाई। चींटी रानी ने सोच-विचार कर कहा 'हम तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे । हमारी बांबी के पास एक संकरीला नुकीले पत्थरों भरा रास्ता है। तुम किसी तरह उस अजगर को उस रास्ते पर आने के लिए मजबूर करो। बाकी काम मेरी सेना पर छोड़ दो। नेवले को अपनी मित्र चींटी रानी पर पूरा विश्वास था इसलिए वह अपनी जान जोखिम में डालने पर तैयार हो गया। दूसरे दिन नेवला जाकर सांप के बिल के पास अपनी बोली बोलने लगा। अपने शत्रु की बोली सुनते ही अजगर क्रोध में भरकर अपने बिल से बाहर आया। नेवला उसी संकरे रास्ते वाली दिशा में दौड़ाया। अजगर ने पीछा किया। अजगर रुकता तो नेवला मुड़कर फुफकारता और अजगर को गुस्सा दिलाकर फिर पीछा करने पर मजबूर करता। इसी प्रकार नेवले ने उसे संकरीले रास्ते से गुजरने पर मजबूर कर दिया। नुकीले पत्थरों से उसका शरीर छिलने लगा। जब तक अजगर उस रास्ते से बाहर आया तब तक उसका काफ़ी शरीर छिल गया था और जगह-जगह से ख़ून टपक रहा था। उसी समय चींटियों की सेना ने उस पर हमला कर दिया। चींटियां उसके शरीर पर चढकर छिले स्थानों के नंगे मांस को काटने लगीं। अजगर तडप उठा। अपने शरीर से खुन पटकने लगा जिससे मांस और छिलने लगा और चींटियों को आक्रमण के लिए नए-नए स्थान मिलने लगे। अजगर चींटियों का क्या बिगाडता? वे हजारों की गिनती में उस पर टूट पढ़ रही थीं। कुछ ही देर में क्रूर अजगर तडप-तडपकर दम तोड दिया। सीख- संगठन शक्ति बड़े-बड़ों को धूल चटा देती है। क्योंकि संगठन में - कायदा नहीं, व्यवस्था होती है। संगठन में - सुचना नहीं, समझ होती है। संगठन में - क़ानून नहीं, अनुशासन होता है। संगठन में - भय नहीं, भरोसा होता है। संगठन में - शोषण नहीं, पोषण होता है। संगठन में - आग्रह नहीं, आदर होता है। संगठन में - संपर्क नहीं, सम्बन्ध होता है। संगठन में - अर्पण नहीं, समर्पण होता है। इस लिए स्वयं को संगठन से जोड़े रखें।संगठन सामूहिक हित के लिए होता है।व्यक्तिगत स्पर्धा और स्वार्थ के लिए नही

Friday, May 22, 2020

साधन, साधना और सिद्धियाँ


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#मानव_शरीर_में_सप्तचक्रों_का_प्रभाव.

1. #मूलाधारचक्र : .

यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच 4 पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है। .

मंत्र : लं .

चक्र जगाने की विधि : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है- यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना। .

प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।.

2. #स्वाधिष्ठानचक्र.

यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से 4 अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी 6 पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।.

मंत्र : वं.

कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते। .

प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश.

होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हों तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।.

3. #मणिपुरचक्र : .

नाभि के मूल में स्थित यह शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो 10 कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।.

मंत्र : रं.

कैसे जाग्रत करें : आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं।
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आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।.

4. #अनाहतचक्र-.

हृदयस्थल में स्थित द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।.

मंत्र : यं.

कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।.

प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।.

5. #विशुद्धचक्र.

कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो 16 पंखुरियों वाला है। सामान्य तौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे।.

मंत्र : हं .

कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।.

प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर 16 कलाओं और 16 विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।.

6. #आज्ञाचक्र :.

भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इसे बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।.

मंत्र : उ .

कैसे जाग्रत करें : भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।.

प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति सिद्धपुरुष बन जाता है।.

7. #सहस्रारचक्र :.

सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।.

मंत्र : ॐ.

कैसे जाग्रत करें : मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।.

प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।.

Saturday, May 9, 2020

ईश्वर का गणित

ईश्वर का गणित✨💠*.
_💙एक बार दो आदमी एक मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे । वहां अंधेरा छा रहा था और बादल मंडरा रहे थे । थोड़ी देर में वहां एक आदमी आया और वो भी उन दोनों के साथ बैठकर गपशप करने लगा ।_.
_🍃कुछ देर बाद वो आदमी बोला उसे बहुत भूख लग रही है, उन दोनों को भी भूख लगने लगी थी । पहला आदमी बोला मेरे पास 3 रोटी हैं, दूसरा बोला मेरे पास 5 रोटी हैं, हम तीनों मिल बांट कर खा लेते हैं।_ .
_🍃उसके बाद सवाल आया कि 8 (3+5) रोटी तीन आदमियों में कैसे बांट पाएंगे ?? पहले आदमी ने राय दी कि ऐसा करते हैं कि हर रोटी के 3 टुकडे करते हैं, अर्थात 8 रोटी के 24 टुकडे (8 X 3 = 24) हो जाएंगे और हम तीनों में 8 - 8 टुकड़े बराबर बराबर बंट जाएंगे।_.
_🍃तीनों को उसकी राय अच्छी लगी और 8 रोटी के 24 टुकडे करके प्रत्येक ने 8 - 8 रोटी के टुकड़े खाकर भूख शांत की और फिर बारिश के कारण मंदिर के प्रांगण में ही सो गए । सुबह उठने पर तीसरे आदमी ने उनके उपकार के लिए दोनों को धन्यवाद दिया और प्रेम से 8 रोटी के टुकड़ों के बदले दोनों को उपहार स्वरूप 8 सोने की गिन्नी देकर अपने घर की ओर चला गया ।_.
_🍃उसके जाने के बाद दूसरे आदमी ने पहले आदमी से कहा हम दोनों 4 - 4 गिन्नी बांट लेते हैं । पहला आदमी बोला नहीं मेरी 3 रोटी थी और तुम्हारी 5 रोटी थी, अतः मैं 3 गिन्नी लुंगा, तुम्हें 5 गिन्नी रखनी होगी । इस पर दोनों में बहस होने लगी ।_.
_🍃इसके बाद वे दोनों समाधान के लिये मंदिर के पुजारी के पास गए और उन्हें समस्या बताई तथा समाधान के लिए प्रार्थना की ।_
_पुजारी भी असमंजस में पड़ गया, दोनों दूसरे को ज्यादा देने के लिये लड़ रहे है । पुजारी ने कहा तुम लोग ये 8 गिन्नियाँ मेरे पास छोड़ जाओ और मुझे सोचने का समय दो, मैं कल सवेरे जवाब दे पाऊंगा । पुजारी को दिल में वैसे तो दूसरे आदमी की 3-5 की बात ठीक लग रही थी पर फिर भी वह गहराई से सोचते-सोचते गहरी नींद में सो गया। कुछ देर बाद उसके सपने में भगवान प्रगट हुए तो पुजारी ने सब बातें बताई और न्यायिक मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की और बताया कि मेरे ख्याल से 3 - 5 बंटवारा ही उचित लगता है ।_.
_🍃भगवान मुस्कुरा कर बोले- नहीं, पहले आदमी को 1 गिन्नी मिलनी चाहिए और दूसरे आदमी को 7 गिन्नी मिलनी चाहिए । भगवान की बात सुनकर पुजारी अचंभित हो गया और अचरज से पूछा-_.
_✨प्रभु, ऐसा कैसे ?_.
_✨भगवन फिर एक बार मुस्कुराए और बोले :_.
_🍃इसमें कोई शंका नहीं कि पहले आदमी ने अपनी 3 रोटी के 9 टुकड़े किये परंतु उन 9 में से उसने सिर्फ 1 बांटा और 8 टुकड़े स्वयं खाया अर्थात उसका त्याग सिर्फ 1 रोटी के टुकड़े का था इसलिए वो सिर्फ 1 गिन्नी का ही हकदार है । दूसरे आदमी ने अपनी 5 रोटी के 15 टुकड़े किये जिसमें से 8 टुकड़े उसने स्वयं खाऐ और 7 टुकड़े उसने बांट दिए । इसलिए वो न्यायानुसार 7 गिन्नी का हकदार है .. ये ही मेरा गणित है और ये ही मेरा न्याय है !_.
_🍃ईश्वर की न्याय का सटिक विश्लेषण सुनकर पुजारी नतमस्तक हो गया।_.
_🍃इस कहानी का सार ये ही है कि हमारी वस्तुस्थिति को देखने की, समझने की दृष्टि और ईश्वर का दृष्टिकोण एकदम भिन्न है । हम ईश्वरीय न्यायलीला को जानने समझने में सर्वथा अज्ञानी हैं ।_
_हम अपने त्याग का गुणगान करते है, परंतु ईश्वर हमारे त्याग की तुलना हमारे सामर्थ्य एवं भोग तौर कर यथोचित निर्णय करते हैं ।_ .
*_🍃यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितने धन संपन्न है, महत्वपूर्ण यहीं है कि हमारे सेवाभाव कार्य में त्याग कितना है